मन मस्त हुआ || आचार्य प्रशांत, संत कबीर पर (2024)

2024-09-22 0

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वीडियो जानकारी: 29.06.24, संत सरिता, ग्रेटर नॉएडा

प्रसंग:
~ साधन क्या है? साध्य क्या है?
~ कब साधन ही साध्य बन जाता है?
~ सरताज कौन है?
~ मंज़िल किसे मिलती है?
~ गुरु किसके काम आते हैं?
~ हमारा सारा प्यार किसके लिए है?
~ असफल खोजें कौन सी होती हैं?
~ दुनिया से बड़ा कुछ क्यों नहीं मिल सकता?
~ संसार की प्रकृति क्या है?
~ छोटी माँग किसका प्रतीक है?
~ बड़े की खोज में निराशा क्यों मिलेगी? क्यों उनका सौभाग्य होता है जिन्हें सीधे ही बड़ी चीज चाहिए?
~ हमारी केंद्रीय पहचान क्या है?
~ मन और इंद्रियों की सारी चेष्टा बस यह समझने के लिए है कि 'यह सब चल क्या रहा है?'
~ ये सवाल क्यों नहीं उठता कि 'यह सब चल क्या रहा है?'
~ हम बचपन से लेके बड़े होने तक ऐसे हिंसात्मक क्यों हो जाते हैं?

मन मस्त हुआ तब क्यों बोले

हीरा पायो गाँठ गँठियायो, बार-बार वाको क्यों खोले ॥

हलकी थी तब चढ़ी तराजू, पूर भई तब क्यों तोले ॥

सुरत कलारी भइ मतवारी, मदवा पी गई बिन तोले ॥

हंसा पाये मान सरोवर,ताल तलैया क्यों डोले ॥

तेरा साहेब है घट माहीं, बाहर नैना क्यों खोले ॥

कहैं कबीर सुनो भाई साधो, साहेब मिल गये तिल ओले ॥

~ कबीर साहब


संगीत: मिलिंद दाते
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